संघर्ष से स्टार्टअप तक: साहस का सफर


 

आज जब स्टार्टअप की दुनिया उत्साह, नवाचार और टेक्नोलॉजी से भरी हुई है, हमें उन कहानियों को भी याद रखना चाहिए जो सौ साल पहले साहस और आत्मविश्वास से लिखी गई थीं। यह कहानी एक युवा की है जिसने जातिगत भेदभाव, सामाजिक उपेक्षा और असफलताओं के बावजूद अपना व्यवसाय शुरू करने का साहस दिखायाएक ऐसा साहस जो उस समय असंभव लगता था।

करीब सौ वर्ष पहले, एक प्रतिभाशाली युवा विदेशी शिक्षा अधूरी छोड़कर भारत लौटता है। आमतौर पर लोग विदेश से वापस आने पर उत्साहित होते हैं, लेकिन यह युवा उदास था। स्कॉलरशिप समाप्त हो जाने के कारण उसे अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़नी पड़ी। स्कॉलरशिप के अनुबंध के अनुसार उसे बड़ौदा रियासत में सेवा देनी थी। उसकी काबिलियत के आधार पर उसे मिलिट्री सेक्रेटरी बनाया गया, और आगे चलकर वित्त मंत्री बनने की संभावना थी।

लेकिन जातिवाद ने उसके सपनों को चूर-चूर कर दिया। वह प्रथम श्रेणी का अधिकारी था, फिर भी दफ्तर के चपरासी और क्लर्क उसके साथ जातिगत भेदभाव करते थेपानी देने से इनकार, फाइलें दूर से फेंकना और रहने के लिए घर ना मिलना आम बात थी। मजबूरी में वह एक पारसी धर्मशाला में ठहरा, लेकिन वहां भी कुछ जातिवादी लोगों ने उसे मारने की धमकी दी और बाहर निकाल दिया।

एक रात वह एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठानिराश, लेकिन आत्ममंथन में डूबा। उसने सोचा, "अगर मेरे साथ ऐसा हो रहा है, तो उन अनपढ़ और गरीब दलितों का क्या हाल होता होगा?"

जब एक राजा भी उसे जाति के कारण सुरक्षित नौकरी और निवास नहीं दे सका, तब उसने यह समझा कि समाज कितना कठोर और अंधा है। अंततः उसने नौकरी छोड़ दी और अपने शहर लौट आया।

उसके मन पर दोहरा आघात हुआ थाएक अधूरी शिक्षा का, और दूसरा खोई हुई नौकरी का। लेकिन वह हार मानने वालों में से नहीं था। उसने संघर्ष किया और छोटे-मोटे काम की तलाश की, लेकिन जातिवाद वहां भी उसकी राह में दीवार बनकर खड़ा रहा।

उसने सोचने के बजाय कुछ करने की ठानी। उसने अपनी शिक्षा और स्थानीय बाजार का विश्लेषण किया औरस्टॉक मार्केट एंड शेयर्सनाम से एक कंसल्टिंग कंपनी की शुरुआत की। उस समय, यह भारतीय समाज में एक पिछड़ी जाति के युवक द्वारा स्टार्टअप शुरू करने का साहसिक प्रयास था।

कंपनी मुंबई के दलाल स्ट्रीट पर स्थित थी, और वह व्यापारियों उद्योगों को सलाह देने लगा। उसने प्राचीन भारतीय व्यापार, ब्रिटिश अर्थव्यवस्था और आधुनिक प्रबंधन सिद्धांतों पर गहन अध्ययन कर रखा था। शुरुआत में उसका काम अच्छा चल पड़ा, लेकिन जैसे ही व्यापारियों को उसकी जाति का पता चला, उन्होंने सलाह लेना बंद कर दिया। अंततः उसे अपना ऑफिस बंद करना पड़ा।

💔 यह हकीकत आज भी कुछ हद तक बनी हुई हैजातीय पूर्वाग्रहों का सामना कई उद्यमियों को करना पड़ता है।

पर सोचिए, जब आज से सौ साल पहले जातिवाद चरम पर था, तब एक 26 वर्षीय युवा ने उद्यमिता की राह चुनी! यह युवा और कोई नहीं, बल्कि डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर थेआज जिन्हें हम बाबासाहेब अंबेडकर के नाम से जानते हैं।

उन्होंने सिर्फ समाजशास्त्र, कानून और राजनीति में ही नहीं, बल्कि उद्यमिता के क्षेत्र में भी नए आयाम स्थापित किए। वर्ष 2017 में, उनकी 125वीं जयंती के साथ ही उनके स्टार्टअप के 100 वर्ष भी पूरे हुए। उसी वर्ष भारत सरकार ने स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया योजना शुरू की, जिसमें 2.5 लाख युवा उद्यमियों को खड़ा करने का लक्ष्य रखा गया।

🔍 यह शोध का विषय है कि कितने युवाओं तक यह योजना पहुँची, कितने सामने आए, उन्हें किस तरह की चुनौतियाँ मिलीं, और आगे किस तरह यह मार्ग प्रशस्त होगा।

यह कहानी केवल एक व्यक्ति की नहीं, यह उन लाखों युवाओं की है जो विषम परिस्थितियों के बावजूद अपने सपनों का पीछा करते हैं। यह सफर हमें सिखाता है कि जब कोई राह नहीं होती, तो संघर्ष खुद रास्ता बना देता है।

और यही साहस, यही दृष्टि, यही आत्मबल एक ऐसे युवक में था जो आज इतिहास में डॉ. बी.आर. अंबेडकर के नाम से सम्मानित हैं। उन्होंने सिर्फ संविधान नहीं रचा, बल्कि आत्मनिर्भरता, शिक्षा, और उद्यमिता के ज़रिये सामाजिक क्रांति की नींव रखी। उनकी स्टार्टअप यात्रा उस युग में शुरू हुई थी जब जातिगत भेदभाव सर्वाधिक थाऔर इसी को चुनौती देना उनकी प्रेरणा का मूल था।

आज जब हम उद्यमिता को नवाचार से जोड़ते हैं, तो हमें याद रखना चाहिए कि सामाजिक नवाचार की नींव उन्होंने सौ वर्ष पहले ही रख दी थी।

 

डॉ. चक्रधर इंदुरकर,

सहायक प्राध्यापक (उद्यमिता )


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Dr Babasaheb Ambedkar School of Entrepreneurship - YouTube





 

Comments

  1. बहोत ही मोटीवेशनल आर्टिकल लिखा है, बाबासाहेब डॉ. भिमराव आंबेडकर एक मात्र नेता है जिन्होने हर क्षेत्र मे अपनी मास्टरी की है. उनका जीवन एक प्रेरणास्रोत है. बहोत धन्यवाद 🙏💐🙏

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